Meet Ayurvedic Doctor for High ASO Titer Diseases

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क्या आप को भी aso टिटर की बीमारी है आप इलाज कर के परेशान हो गए है कभी बढ़ जाता है तो कभी घट जाता है दर्द से रहते है परेशान दिन रात रहते है बेचैन allopathic medicine खा कर आ चुके है तंग

क्या आप भी बढते aso टिटर से चिंतित है तो अब चिंता छोरो और हमारे इस लेख को आखिर तक पढों आप को aso टिटर से निपटने का सलूशन मिल जायेगा क्यों की हम आप को आज यही बताने वाले है की aso टिटर कैसे ठीक होगा

तो अब परेशान होने की ज़रूरत नहीं है क्यों की आज में आप सभी भाइयों को एक ऐसे जड़ी बूटी दवाई के बारे में बताने वाला हु जिससे aso टिटर हमेशा के लिए ख़त्म हो जायेगा फिर कभी वापस नहीं आयेगा सही सुना आप सभी ने जी हाँ

आइये सबसे पहले जानते है की वह किस टाइप की दवा है क्या कोई नुकसान करेगी या फिर बिना नुकसान के यह ठीक करेगी आप सभी को बता दूँ की यह एक जड़ी बूटी दवा है जो आप को कोई भी नुकसान नहीं करेगी बिना नुकसान के ठीक कर देगी बीमारी

आप सब को जानकारी के लिए बता दूँ की यह दवा बहुत ही असरदार है और यह आप की बीमारी को जड़ से ठीक करता है जिसका नाम है ASO 120D Cure Medicine  और यह दवा आप को फ्लिप्कार्ट और अमेज़न पर भी मिल जाएगी यह Approved दवा है

एएसओ टिटर क्या है?

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एएसओ टिटर (Anti Streptolysin O titre) एक ब्लड टेस्ट है जो शरीर में स्ट्रीपटोकोकस बैक्टीरिया के संक्रमण का पता लगाने के लिए किया जाता है। जब शरीर में यह बैक्टीरिया प्रवेश करता है, तो इम्यून सिस्टम इसके खिलाफ एंटीबॉडीज का निर्माण करता है। एएसओ टेस्ट इस एंटीबॉडी की मात्रा को मापता है। एएसओ टिटर अधिकतर तब किया जाता है जब किसी व्यक्ति को गले में संक्रमण (फेरिंजाइटिस) या त्वचा पर संक्रमण का संदेह होता है जो स्ट्रीपटोकोकस बैक्टीरिया से संबंधित हो सकता है।

यदि एएसओ का स्तर अधिक पाया जाता है, तो इसका मतलब है कि व्यक्ति को हाल ही में स्ट्रीपटोकोकस संक्रमण हुआ है। समय पर इस संक्रमण का उपचार न किया जाए तो यह आगे चलकर रूमेटिक फीवर और ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस जैसी बीमारियों का कारण बन सकता है। इसलिए, इस टेस्ट का समय पर पता लगाना और उपचार बेहद महत्वपूर्ण है।

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एएसओ टिटर से जुड़ी समस्याएं

एएसओ टिटर का स्तर बढ़ने से आमतौर पर निम्नलिखित समस्याएं हो सकती हैं:

  1. रूमेटिक फीवर: यह एक जटिलता है जो स्ट्रीपटोकोकस बैक्टीरिया के इलाज न होने पर विकसित हो सकती है। इससे दिल, जोड़ों, त्वचा और मस्तिष्क प्रभावित हो सकते हैं।
  2. ग्लोमेरुलोनेफ्राइटिस: यह एक किडनी की बीमारी है जो स्ट्रीपटोकोकस संक्रमण के बाद उत्पन्न हो सकती है।
  3. स्कारलेट फीवर: यह संक्रमण से उत्पन्न होने वाली एक स्थिति है जिसमें त्वचा पर लाल धब्बे निकलते हैं और गले में तेज दर्द होता है।
  4. सेप्सिस: यह स्ट्रीपटोकोकस बैक्टीरिया के गंभीर संक्रमण से उत्पन्न हो सकता है, जिसमें बैक्टीरिया रक्तप्रवाह में प्रवेश करता है और शरीर के विभिन्न अंगों को प्रभावित करता है।

एएसओ टिटर के आयुर्वेदिक इलाज

आयुर्वेद, एक प्राचीन भारतीय चिकित्सा पद्धति, शरीर में होने वाले असंतुलनों को जड़ से ठीक करने पर केंद्रित है। यह रोगी के शरीर की प्राकृतिक शक्ति को बढ़ाने और बैक्टीरिया से लड़ने के लिए इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करता है। एएसओ टिटर से संबंधित समस्याओं का आयुर्वेदिक दृष्टिकोण निम्नलिखित है:

1. आहार चिकित्सा (Dietary Therapy)

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आयुर्वेद में आहार का विशेष महत्व है। स्ट्रीपटोकोकस संक्रमण के दौरान और उसके बाद रोगी का आहार बहुत महत्वपूर्ण होता है। निम्नलिखित आहार अपनाया जा सकता है:

  • हल्का और सुपाच्य भोजन: शरीर को संक्रमण से लड़ने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है, लेकिन इसे पचाने में अधिक ऊर्जा न लगे। इसके लिए मूंग की दाल, खिचड़ी, और दलिया उपयुक्त होते हैं।
  • ताजा फल और सब्जियां: ये इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाने में मदद करते हैं। विशेष रूप से विटामिन C से भरपूर फल जैसे संतरा, नींबू और आंवला महत्वपूर्ण होते हैं।
  • तुलसी और हल्दी: तुलसी और हल्दी के सेवन से शरीर में एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण बढ़ते हैं। इन्हें चाय में मिलाकर या दूध में हल्दी मिलाकर सेवन करना फायदेमंद हो सकता है।

2. हर्बल उपचार (Herbal Remedies)

आयुर्वेदिक जड़ी-बूटियाँ संक्रमण से लड़ने में मदद करती हैं। कुछ महत्वपूर्ण जड़ी-बूटियाँ निम्नलिखित हैं:

  • गुडुची (Tinospora Cordifolia): यह जड़ी बूटी शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने में मदद करती है और संक्रमण को कम करती है। इसे आयुर्वेद में इम्युनोमॉड्यूलेटर के रूप में माना जाता है।
  • आंवला (Indian Gooseberry): विटामिन C का एक समृद्ध स्रोत होने के कारण, आंवला शरीर के प्रतिरक्षा तंत्र को मजबूत करता है और शरीर से विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने में मदद करता है।
  • नीम (Azadirachta indica): नीम एक प्राकृतिक एंटी-बैक्टीरियल और एंटी-सेप्टिक है। इसका सेवन संक्रमण को रोकने में मदद कर सकता है।
  • तुलसी (Holy Basil): तुलसी संक्रमण से लड़ने और गले की सूजन को कम करने में मदद करती है।
  • हल्दी (Turmeric): हल्दी में करक्यूमिन होता है, जो एंटी-इंफ्लेमेटरी और एंटीबायोटिक गुणों के लिए जाना जाता है।

3. पंचकर्म (Detoxification Therapy)

आयुर्वेदिक पंचकर्म शरीर को शुद्ध करने और विषाक्त पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उपयोग किया जाता है। संक्रमण के बाद, पंचकर्म शरीर की प्रतिरक्षा शक्ति को पुनः प्राप्त करने में मदद करता है। इसमें निम्नलिखित प्रक्रियाएँ शामिल हो सकती हैं:

  • वमन (Therapeutic Vomiting): शरीर से अतिरिक्त कफ और विषाक्त पदार्थों को निकालने के लिए किया जाता है।
  • विरेचन (Purgation Therapy): शरीर से पित्त दोष को नियंत्रित करने के लिए यह प्रक्रिया उपयोग की जाती है।
  • नस्य (Nasal Therapy): यह प्रक्रिया गले, नाक, और कानों के संक्रमण से राहत पाने में मदद करती है।

4. योग और प्राणायाम

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योग और प्राणायाम शरीर की ऊर्जा को पुनः प्राप्त करने में मदद करते हैं और तनाव को कम करते हैं, जो कि संक्रमण के बाद बेहद जरूरी होता है। निम्नलिखित योग और प्राणायाम एएसओ टिटर से संबंधित समस्याओं में मदद कर सकते हैं:

  • भस्त्रिका प्राणायाम: यह प्राणायाम शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाता है और शरीर की इम्यूनिटी को बढ़ाता है।
  • अनुलोम-विलोम: यह नाड़ी शोधन प्राणायाम तनाव को कम करता है और शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करता है।
  • सूर्य नमस्कार: यह योग आसन शरीर के मेटाबोलिज्म को तेज करता है और शरीर को डिटॉक्स करने में मदद करता है।

5. जीवनशैली में बदलाव

आयुर्वेद में जीवनशैली का भी महत्वपूर्ण योगदान है। कुछ जीवनशैली संबंधित टिप्स जो एएसओ टिटर के मामलों में लाभकारी हो सकते हैं:

  • नियमित व्यायाम: हल्का व्यायाम जैसे चलना, योग और प्राणायाम करने से शरीर की इम्यूनिटी बढ़ती है।
  • पर्याप्त नींद: संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर को आराम की आवश्यकता होती है। 7-8 घंटे की पर्याप्त नींद लेना महत्वपूर्ण है।
  • तनाव का प्रबंधन: तनाव शरीर की इम्यूनिटी को कमजोर करता है। इसके लिए ध्यान और योग नियमित रूप से करें।

निष्कर्ष

एएसओ टिटर के मामलों में आयुर्वेदिक उपचार शरीर को भीतर से मजबूत बनाने और इम्यून सिस्टम को पुनः प्राप्त करने में मदद करता है। आयुर्वेदिक आहार, हर्बल उपचार, पंचकर्म, योग और सही जीवनशैली अपनाकर इस संक्रमण के प्रभाव को कम किया जा सकता है। हालांकि, किसी भी उपचार को शुरू करने से पहले आयुर्वेदिक विशेषज्ञ की सलाह लेना आवश्यक है ताकि उपचार व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार किया जा सके।

 

 

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